ब्रिटेन स्थित इंटरनेट वाच फाउंडेशन (आई.डब्लू.एफ) का लक्ष्य बहुत महान है – इंटरनेट पर बाल-उत्पीड़न के चित्रों की रोकथाम करना। इस तरह की तस्वीरों के प्रसार पर रोक लगाने के लिए वे ब्रितानी इंटरनेट सेवा प्रदाताओं, सरकार, और पुलिस के साथ नियमित रूप से संपर्क में रहते हैं।
चुनाँचे, जब एक वेबसाइट ने जर्मनी के एक हेवी-मेटल बैंड, द स्कॉर्पियन्ज़, के एक सत्तर के दशक के अल्बम के कवर पर एक नग्न बालिका का चित्र छापा, तो आई.डब्लू.एफ के उस वेबसाइट के पीछे पड़ने के फैसले में कोई असाधारण बात नहीं थी।
समस्या बस यह थी कि जिस साइट की बात हो रही है, वह है विकिपीडिया — विश्व की सब से लोकप्रिय साइटों में से एक। कई ब्रितानी इंटरनेट सेवा प्रदाताओं ने फाउंडेशन की मांगों को मान कर विकिपीडिया के उस पृष्ठ को अपने ग्राहकों तक पहुँचने से रोका। पर इस प्रतिबंध के कारण साइट के प्रबन्धकों का काम काफी पेचीदा हो गया है — वैध प्रयोक्ताओं और जालसाज़ों के बीच अन्तर करें तो कैसे।
विकीपीडिया वालों की सैद्धान्तिक और अडिग प्रतिक्रिया आने में देर नहीं लगी। उन्होंने केवल एक पृष्ठ नहीं, बल्कि उन छः इंटरनेट सेवा प्रदाताओं (आईएसपी) के लिए अपनी पूरी साइट को ही अनुपलब्ध करा देने का निश्चय किया।
इस विवाद के चलते इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के भविष्य, और विकीपीडिया जैसे सामुदायिक जालस्थलों पर बढ़ते हुए आत्म-अनुशासन के उत्तरदायित्व जैसे मुद्दों पर महत्वपूर्ण बहसों के पुनः छिड़ जाने की पुरी संभावना है। परन्तु इस से रोचक बात यह है कि आई.डब्लू.एफ की ज़ोरदार तदबीरें क्यों उल्टी पड़ गईं और स्कॉर्पियन के विवादास्पद चित्रों से जनता का ध्यान कम करने के उनके लक्ष्य पर पानी क्यों फिर गया। फाउंडेशन की आशाओं के विपरीत, वह भूला बिसरा अल्बम कवर रातों रात इंटरनेट की सनसनी बन गया।
आई.डब्लू.एफ इंटरनेट से जुड़ी जिस अद्भुत घटना की शिकार हो गई है, उसे स्ट्राइसैंड प्रभाव कहा जाता है, यानी जब आप इंटरनेट पर किसी सूचना को दबाना या हटाना चाहते हैं, तो उस का असर उल्टा हो जाता है, और सूचना दबने की जगह और फैल जाती है। इस प्रभाव का नाम गायिका, अभिनेत्री बार्बरा स्ट्राइसैंड पर पड़ा है, जिन्होंने अपने मालिबू वाले बंगले के चित्रों को छपने से रोकने के लिए कानूनी दाँव पेंच लगाए, पर असफल रहीं; उल्टा इससे उन का व्यक्तिगत जीवन इंटरनेट पर और अधिक चर्चों में आ गया। स्ट्राइसैंड प्रभाव के हाल के अन्य शिकार हैं साइंटॉलोजी चर्च (जिन्होंने अभिनेता टॉम क्रूज़ के उस वीडियो को दबाने की कोशिश की जिस में वे इस चर्च के बारे में बात कर रहे थे), स्विस बैंक जूलियस बेयर (जिन्होंने ऐसे दस्तावेज़ों को दबाने की कोशिश की जिन में बैंक पर संपत्ति छिपाने और हवाला में शामिल होने का आरोप था), और रूसी कुलीन अलीशर उस्मानोव (जिन्होंने ब्रितानी चिट्ठों में छपने वाली अपनी आलोचना और अपने अतीत की मसालेदार खबरों को दबाने की कोशिश की)।
जैसे जैसे स्ट्राइसैंड प्रभाव किसी भी जनसंपर्क शास्त्र के छात्र के लिए पाठ्यपुस्तक जितना महत्वपूर्ण बनता जा रहा है, यह बात हैरानी की बात है कि कुछ संगठन और व्यक्ति अभी भी स्ट्राइसैंड से पहले के ज़माने में अटके हुए हैं और उसी ज़माने की धमकियों और न्यायिक आदेशों से काम ले रहे हैं। इसे अच्छा कह लीजिए या बुरा, इंटरनेट पर कानूनी धमकियों से कोई वाजिब असर नहीं होता। इतने सारे बेनाम लोग, और इतने सारे न्यायिक अधिकार क्षेत्र — किस किस पर और कहाँ कहाँ मुकदमा चलाएँगे।
अन्तर्जाल पर सीधे सामना करने से क्यों काम नहीं चलता, इस का एक कारण यह भी है कि डिजिटल मसौदे को इंटरनेट से बाहर निकाल फेंकना असंभव है। उल्टे, आप जितना इसे दबाने की कोशिश करेंगे, उतना वह और उछलेगा। जैसा कि बार्बरा स्ट्राइसैंड को तजुर्बा हुआ, एक तकनीकी रूप से जानकार जनाधिकार समर्थकों की भीड़ से सैन्यवादी रुख रखने से कुछ हासिल नहीं होता। कइयों के अपने सर्वर होते हैं, ब्लॉग होते हैं – और सामाजिक जालपृष्ठों पर उनके हज़ारों मित्र होते हैं – इस कारण उन्हें चुप कराने की ज़्यादा ज़ोरदार कोशिशें की जाएँ तो संवेदनशील सूचनाएँ और अधिक फैलती हैं।
इस से प्रभावित लोगों के पास दो ही विकल्प बचते हैं — चु्प्पी या वार्तालाप। मीडिया के आज के युग में चुप्पी साधना भी एक हथियार हो सकता है, खासकर यदि आप का बीता हुआ कल दाग़दार है, उस रूसी अरबपति की तरह। ब्लॉगरों पर मुकद्दमेबाजी करोगे तो आपका ही नाम सुर्खियों में उछलेगा, और बदनामी ही होगी कि आप ने मुक्त अभिव्यक्ति पर रोक लगाने की कोशिश की है।
पर आई.डब्लू.एफ जैसे संगठनों का क्या, जो भले कामों के लिए लड़ते हैं? स्ट्राइसैंड प्रभाव के ज़माने में उनकी मूल युक्ति होनी चाहिए कि इस तरह का अप्रिय मसौदा छापने वाली इंटरनेट कंपनियों से बातचीत करें, न कि झगड़ें – खासकर जब ऐसी कंपनियाँ लोकप्रिय और अन्यथा विवादरहित हों। विकिपीडिया में कमियाँ भले ही हों, पर उन के यहाँ एक भला चंगा नियन्त्रण तन्त्र भी लागू है; यदि आप ने कभी विकिपीडिया की डाक सूचियों पर होने वाली चर्चाओं को पढ़ा हो तो आप को मालूम होगा कि उस के मध्यस्थक और प्रबन्धक खुले तौर पर विवादास्पद मुद्दों पर नियमित बात करते रहते हैं।
इंटरनेट कितना भी क्रान्तिकारी हो, उस में मानवीय संवाद के मूल नियम अभी भी बरकरार हैं। यानी, कोई भी सौदेबाज़ी शुरू करने का बेहतर तरीका यह है कि संभाषियों से विनम्रता से पेश आया जाए, खासकर जब सीनाज़ोरी एक साइबर-युद्ध को बुलावा भेजने के बराबर हो।
मूल अंग्रेज़ी लेख से अनुवादः रमण कौल। न्यूयॉर्क टाईम्स की पूर्वानुमति से प्रकाशित।
बेहतर आलेख
धन्यवाद रमण कौल जी, इसे प्रस्तुत करने के लिये
झगड़ा वहां कारगर होता है, जहां हम सामनेवाले तक पहुंच सकते हैं। इंटरनेट पर तो सबकुछ हवा में है। कोई भी झगड़ा मायावी युद्ध में तब्दील हो सकता है, जिसमें आचार-विचार अथवा कायदा-कानून का कोई स्थान शायद न हो। ऐसी स्थिति में इंटरनेट पर किसी भी विवाद के समाधान के लिए विनम्रता ही सर्वश्रेष्ठ युक्ति है। आलेख के निष्कर्षों से पूरी सहमति।
‘सामयिकी’ की सादगीपूर्ण सज्जा और लेखों की स्तरीयता सराहनीय है।
बहुत अच्छा लेख प्रस्तुत किया आपने बहुत बहुत धन्यवाद. दिल की गहराई से।
सटीक निष्कर्ष निकाला है आपने !
आभार इस आलेख के लिए.