गता है जैसे कि पूरा का पूरा इंटरनेट फ़ेसबुक-मय हो गया हो। सालेक भर पहले दुनिया गूगल-गूगल और ओरकुट-ओरकुट कहते पगलाती थी और साल बीतते न बीतते इंटरनेटिय जनसंख्या पूरी फ़ेसबुकिया गई सी लगती है। और, कोढ़ में खाज यह कि अब तो ब्राउज़र भी फेसबुक-मय हो गया है!
रॉकमेल्ट एक ऐसा नया, ताज़ा, बीटा स्वरूप में जारी किया गया ब्राउज़र है जिसे सोशियल ब्राउज़र श्रेणी में रखा गया है। सामाजिक ब्राउज़र की शुरूआत मोजिल्ला आधारित फ्लॉक ब्राउज़र से हुई थी जिसमें ब्राउज़र में ही ब्लॉगिंग की तमाम सुविधाएँ मौजूद थी। रॉकमेल्ट ब्राउज़र एक कदम आगे है। यह गूगल क्रोम ब्राउज़र के आधार पर बनाया गया है, और – जी, हाँ, आपने ठीक समझा – इसमें फ़ेसबुक को सम्मिलित कर दिया गया है।
रॉकमेल्ट अभी बीटा संस्करण में जारी किया गया है, परंतु इसे सार्वजनिक प्रयोग के लिए जारी नहीं किया गया है। आपको याद होगा, जब गूगल ने अपना जीमेल जारी किया था तो निमंत्रण के जरिए खाता खोलने का विकल्प दिया गया था। इसी तरह से रॉकमेल्ट का प्रयोग करने के लिए भी आपको एक अदद निमंत्रण की आवश्यकता होगी – जिसके जरिए आप रॉकमेल्ट का इंस्टालर डाउनलोड कर सकेंगे और इसका प्रयोग कर सकेंगे।
जब आप रॉकमेल्ट का इंस्टालर चलाते हैं, तो पहले पहल चालू होने से पहले रॉकमेल्ट आपके फेसबुक खाते से जुड़ने के लिए कहता है। यदि नहीं जुड़े हैं तो आपको एक फेसबुक खाता खोलने के लिए कहता है। है न किसी ब्राउज़र की फेसबुकिया इंतिहा?
रॉकमेल्ट को इंटरनेटी इतिहास के सबसे पुराने और प्रसिद्ध ब्राउजरों में से एक नेटस्केप नेविगेटर के निर्माता मार्क एंड्रीसन का समर्थन हासिल है। और रॉकमेल्ट के डेवलपरों में से एक, टिम होव्स का कहना है कि पिछले वर्षों में 50 करोड़ प्रयोक्ताओं ने अपने ब्राउज़र बदले। तो, यदि आप बेहतर उत्पाद देंगे तो लोग अपनी आदतें – यानी ब्राउज़र बदलने में देरी नहीं करेंगे। यानी इसके डेवलपर मुतमईन हैं कि रॉकमेल्ट जारी होते ही एक बड़ा प्रयोक्ता वर्ग खींचने में कामयाब होगा – और क्यों न हो – इंटरनेट प्रयोक्ताओं की संख्या के लिहाज से फेसबुक पहले ही अमरीका में गूगल को पछाड़ कर पहले नंबर पर कब्जा जो कर चुका है।
नया क्या है रॉकमेल्ट ब्राउज़र में?
रॉकमेल्ट चालू करते समय आपको अनिवार्य रूप से फेसबुक और वैकल्पिक रूप से ट्विटर खाते में लॉगइन करना पड़ता है। जैसे ही आप फ़ेसबुक में लॉगिन करते हैं, रॉकमेल्ट सामाजिक ब्राउज़र का विशिष्ट रूप से डिजाइन किया विंडो खुल जाता है जहाँ आप पारंपरिक ब्राउज़र की जगह रंगबिरंगा, फ़ेसबुकिया ब्राउज़र पाते हैं।
रॉकमेल्ट के दाएँ बाजू पट्टी में आपके फेसबुकिया मित्र मंडली कब्जा जमाए मिलेंगे, और उनका स्टेटस वहाँ बदस्तूर दिखता रहेगा कि वे लॉगिन हैं या नहीं और वे फेसबुक में क्या कारस्तानियाँ करते फिर रहे हैं। उनकी कारस्तानियों की लाइव स्टेटस रिपोर्ट आपको वहाँ से मिलती रहेगी। जब भी आपका कोई फेसबुकिया मित्र कोई स्टेटस मैसेज देता है अथवा अपने या किसी दोस्त के वाल पर पोस्ट करता है अथवा कोई चित्र लोड करता है, वो तमाम चीजें पॉपअप के रूप में रॉकमेल्ट आपके सामने प्रस्तुत करता रहता है। आप चाहें तो रॉकमेल्ट को फ़ेसबुक में अपने मित्र-मंडली की खोजबीन के लिए भी बढ़िया तरीके से इस्तेमाल कर सकते हैं। रॉकमेल्ट में सर्च को ज्यादा आकर्षक, ज्यादा रेलेवेंट और ज्यादा तेज बनाया गया है – जैसे कि आप किसी पत्रिका के पन्ने पलट रहे हों। हिंदी में रचनाकार के लिए सर्च किया गया तो परिणाम बेहद सटीक तो रहे ही, फ़ालतू की चीजें भी नहीं दिखीं।
वैसे तो बहुतों का मानना है कि रॉकमेल्ट को फेसबुक के लिए ही विशेष रूप से डिजाइन किया गया है। मगर ऐसा भी नहीं है कि रॉकमेल्ट सिर्फ फेसबुक के भरोसे जिंदा है या रहेगा। इसमें बहुत सी दूसरी सुविधाएँ भी जोड़ी जा रही हैं जो आपके ऑनलाइन सोशल नेटवर्क को ज्यादा जीवंत बनाने की क्षमता रखती हैं। उदाहरणार्थ, रॉकमेल्ट का आरएसएस फ़ीड पाठक आपको लाइव फ़ीड पठन की सुविधा ब्राउज़र के भीतर ही देता है। आपके पसंदीदा फ़ीड के इंटरनेट पर प्रकाशित होने की सूचना प्राप्त होते ही रॉकमेल्ट आपको उसे प्रस्तुत कर देता है।
भविष्य का ब्राउज़र?
सवाल ये है कि क्या रॉकमेल्ट को भविष्य का ब्राउज़र कह सकते हैं? फ़ायरफ़ॉक्स में जब एक्सटेंशन और एडऑन जैसी नई विशिष्टताओं को लाया गया था तब उसे भी भविष्य का ब्राउज़र कहा गया था। पर अब सभी जानते हैं कि फ़ायरफ़ॉक्स भारी भरकम हो गया है और उसके नए संस्करणों में पुराने एक्सटेंशनों के समर्थन की समस्या और तमाम दीगर असुविधाओं के चलते प्रयोक्ता उसका दामन छोड़ क्रोम व ऑपेरा ब्राउज़र की ओर बढ़ने लगे हैं।
रॉकमेल्ट अपने अंतर्निर्मित सोशल नेटवर्किंग सुविधाओं के साथ नया क्या दे रहा है जो इसे विशिष्ट बनाता है जबकि अन्य दूसरे सभी ब्राउज़रों में ब्राउजर एडऑन और प्लगइन के जरिए ऐसी सुविधाएँ बखूबी प्राप्त की जा सकती हैं?
इस सवाल का सही जवाब तो यही होगा कि यह तो समय ही बताएगा कि प्रयोक्ता रॉकमेल्ट को हाथों हाथ लेते हैं या नहीं। मगर यह अपने बीटा स्वरूप में खास निमंत्रण मिलने पर इंस्टाल हो सकने की सीमितता के उपरांत भी इंटरनेट पर कुछ हलचल मचाने की शक्ति दिखा रहा है तो कहा जा सकता है कि इस नए विचार युक्त ब्राउज़र में कुछ बात तो है। और, रॉकमेल्ट के नीचे ठोस गूगल क्रोम ब्राउज़र का आधार तो वैसे भी है।
कुल मिलाकर, फेसबुक के निवासी जिनका खाना-पीना-उठना-बैठना फेसबुक में ही होता है, रॉकमेल्ट का दिली तौर पर स्वागत करेंगे यह तो तय है। मगर रॉकमेल्ट के आधे घंटे के प्रयोग के दौरान मेरे 500 से अधिक फेसबुक-मित्रों के संदेश, स्टेटस रपट, वाल-पोस्टें, चित्र अपलोड करने की खबर और न जाने क्या-क्या हर दूसरे क्षण पॉप अप के रूप में ब्राउज़र के दाएँ निचले कोने में प्रकट होते रहे जो मुझे भारी डिस्टर्ब करते रहे। इस लिहाज से मैं तो रॉकमेल्ट के बगैर ही ठीक हूं – मुझे तो पारंपरिक, सादा ब्राउज़र ही सुहाएगा। पर यदि आप फेसबुक के गंभीर प्रयोक्ता हैं, फ़ार्मविले में आपका बहुत सा वक्त बढ़िया गुजरता है, तब तो रॉकमेल्ट आपके लिए सचमुच रॉकिंग है! आपका क्या कहना है?
यह ब्राऊजर एक आवश्यकता से अधिक मेमोरी खाऊ प्रोग्राम है जो रह रह कर नेपथ्य में एकाधिक पोर्ट कनेक्शन खोलता रहता है, लगातार ऐसा करने से यह नेट से कनेक्टेड दूसरे अनुप्रयोगों को धीमा करता है. मैं इसका प्रयोग फिलहाल बंद कर चुका हूँ.
मुझे तो यह दारू रसिकों के लिए “बार” समान लगा. 🙂
आपको कैसा भी लगे नशे के पूजारियों के लिए स्वर्ग से कम नहीं 🙂
मैंने इसे इंस्टाल किया था लेकिन इसको झेल नहीं सका और कुछ ही घंटों में ही रिमूव कर दिया. फेसबुक की अति भी सही नहीं जाती.
हमको तो इसका न्योता ई-स्वामी जी ने ही दिया था …..और अब लौट कर फिर से फायरफाक्स की शरणागत हूँ !
कारण यही कि हमारे सीमित बैंडविथ की बड़ी खपत …..और धडाधड पॉपअप सन्देश !
सब पुनः फायरफॉक्स की शरणागत हैं, तब तो मैं भी वहीं ठीक हूँ ! वैसे भी फेसबुक व्यसन नहीं है मेरा !