इंटरनेट पर गूगल की एक नई नवेली सोशल नेटवर्किंग सेवा गूगल+ (उच्चारणः गूगल प्लस) चंद चुनिंदा आमंत्रितों के लिए प्रारंभ हो गई है। यह http://plus.google.com या http://www.google.com/+ पर उपलब्ध है।
माना जा रहा है कि गूगल+ को फ़ेसबुक को मात देने की नीयत से अच्छी खासी मेहनत कर प्रस्तुत किया जा रहा है। गूगल यूं भी इंटरनेट पर खोज और ईमेल से लेकर ऑफ़िस अनुप्रयोगों तक की तमाम तरह की सेवाएं और वेब अनुप्रयोग प्रदान कर उस क्षेत्र पर अपना प्रभुत्व बना बैठा है। माईक्रोसॉफ्ट बिंग के प्रवेश के बाद विगत कुछ दिनों में गूगल की बादशाहत को सबसे बड़ा खतरा फ़ेसबुक से ही रहा है, जिसका प्रयोक्ता ने एक दफा रुख किया तो फिर वहीं की हो कर रह गई, ऐसा मुकाम जो आर्कुट को मयस्सर नहीं हो सका। कई क्षेत्रों में तो इंटरनेट प्रयोग के मामले में फ़ेसबुक ने गूगल को पछाड़ कर पहले स्थान पर कब्जा भी कर लिया है। अफवाह तो ये भी है कि गूगल को उसके घर में घुसकर मात देने के लिए फ़ेसबुक ने ईमेल के पश्चात अब अपना सर्च इंजन लाने की भी योजना बना ली है। संभवतः इस समीकरण को बदलने के लिए ही गूगल ने प्लस नामक यह नया सोशल शगूफ़ा छोड़ा है। अब सवाल यही है कि क्या गूगल+ की ये कोशिश कामयाब होगी?
गूगल+ की कुछ सेवाएँ तो हमारे इंटरनेट जीवन और फोटो-वीडियो इत्यादि साझा को करने की गरज से रीडिजाइन की गई प्रतीत होती हैं। मगर इसका असली परीक्षण तो तब होगा जब यह आम प्रयोग के लिए जारी होगा, और तभी यह पता चलेगा कि प्रयोक्ता इसे कितना हाथों हाथ लेते हैं। वैसे भी लोगों को फ़ेसबुक के इतर किसी नये सोशल प्लेटफॉर्म से जोड़ना बड़ी टेढ़ी खीर है।
गूगल की कुछ असफल सेवाएँ
गूगल ने बीते दिनों कई वेब सेवाएँ जारी की जिनके बारे में शुरूआत में काफी हो हल्ला मचा था, परंतु वे जल्द ही फुस्स साबित हो गईं। जाहिर है कि इन सेवाओं को बंद करने के पीछे व्यावसायिक व रणनीतिक कारण होते हैं, आखिरकार नुकसान का व्यापार कौन करना चाहेगा, पर मौजूदा प्रयोक्ताओं और सेवाओं को पसंद करने वाले लोग तो नाराज़ होते ही हैं।
- गूगल वेव – इसमें ढेर सारी “भविष्य की” सेवाएँ थीं – मसलन रीयल टाइम में किसी दस्तावेज़ में अक्षर-दर-अक्षर दूरस्थ संपादन पर निगाह रखना, विकि जैसी ख़ूबी, आसान फ़ाइल साझा और वर्तनी तथा व्याकरण जाँच इत्यादि। मगर यह प्रयोगकर्ताओं के बीच कोई लहर बनाने में नाकामयाब रहा।
- गूगल नॉल – मनुष्य के ज्ञान को साझा करने के उद्देश्य से इस सेवा का प्रयोग प्रारंभ किया गया था, मगर शुरुआती जिज्ञासा के खत्म होते और विकीपीडिया को कुछ दिन डराने के बाद इसके गंभीर प्रयोक्ताओं ने एक तरह से दूरी बना ली है।
- ओरकुट – 2004 में शुरू हुई यह सोशल साइट ब्राजील और भारत के युवाओं में एक समय बेहद लोकप्रिय हो रही थी। मगर इसमें फ़ेसबुक और माइस्पेस में मौजूद असीमित वीडियो अपलोड जैसे फीचर्स की कमी की वजह से दौड़ में पीछे छूट गई है।
- गूगल वेब एस्सेलरेटर – इस सेवा के बारे में गूगल का दावा है कि यह इंटरनेट की गति को 20 प्रतिशत तक बढ़ाने की क्षमता रखता है। परंतु शोधकर्ताओं का दावा है कि आधुनिक उच्च गति के ब्रॉडबैण्ड और ब्राउज़रों में यह कोई खास बदलाव नहीं लाता तथा इसका प्रयोग गूगल मार्केट रीसर्च टूल के रूप में करता है।
- गूगल एंसर्स – याहू! एंसर्स के बारे में तो आपने सुना होगा। गूगल एंसर्स भी कभी जीवंत था। परंतु इसके उत्तरों के लिए शुल्क की आवश्यकता ने फोकटिया वेब प्रयोक्ताओं में पैठ बनाने में यह पूरी तरह नाकामयाब रहा।
- गूगल चेकआउट – जून 2007 में इसे इंटरनेट की भरोसेमंद व बेहद लोकप्रिय भुगतान सेवा ई-बे के पेपैल के एक बेहतर विकल्प के रूप में जारी किया गया था। गूगल चेकआउट चल तो अभी भी रहा है, मगर लोकप्रिय नहीं है, और इसके प्रयोक्ताओं की संख्या भी अपेक्षाकृत कम है।
- गूगल वीडियो – गूगल की वीडियो साझा करने वाली साइट गूगल वीडियो को तो गूगल द्वारा यू-ट्यूब के अधिग्रहण के बाद बंद होना ही था। परंतु यह असफल सेवा कभी भी लोकप्रिय नहीं हो पाई क्योंकि इसका प्रयोग जरा कठिन किस्म का था तथा इसमें वीडियो को भिन्न प्लेटफ़ॉर्म में साझा करने के विकल्प भी नहीं थे।
गूगल की ऐसी ही अन्य कई सेवाएँ हैं – मसलन – लाइवली, डाजबाल, जाइकु, ओपन सोशल इत्यादि जो इंटरनेट पर अपना खास मुकाम बनाने में असफल रही हैं।
गूगल+ की सुविधाएँ
हालांकि यह सेवा अभी रूप से उपलब्ध नहीं है और संभव है कि इसके स्वरूप में पशुरुवाती प्रयोक्ताओं की प्रतिक्रिया के जवाब में कुछ बदलाव हों पर फ़ेसबुक से परे गूगल+ में सुविधाओं की भरमार नहीं है, कुल जमा पाँच हिस्से हैं गूगल+ केः
- सर्कल – इसमें दस्तावेज़, फ़ोटो, वीडियो, कड़ियाँ जैसी तमाम सामग्री को सही व्यक्ति के साथ साझा करने की सुविधा है। आप अपने परिवार, मित्रों या ऑफ़िस सहयोगियों के अलग अलग सर्कल या समूह बना सकते हैं और इस तरह अपनी सामग्री को इंटरनेट पर बेहतर तरीके से साझा कर सकते हैं।
- स्पार्क – यह आपकी प्रकृति के मुताबिक (आपके पिछले वेब सर्फिंग व्यवहार पर बारीक नजर रखकर) वीडियो लिंक, पठन-पाठन सामग्री की लिंक स्वयमेव सहेजता रहता है ताकि जब आप फुरसत में हों तो समय बरबाद करने के नाम पर कुछ मजेदार वीडियो देख लें या पाठ सामग्री की लिंक में जाकर अपना ज्ञानवर्धन कर सकें।
- हैंगआउट्स – फ़ेसबुक फ्रेंड्स की तरह दोस्त बनाने व उनके साथ टिप्पणी, वार्तालाप करने, लिंक टिकाने या सामग्री साझा करने के लिहाज से यह सुविधा जोड़ी गई है।
- इंस्टैंट अपलोड – डिजिटल कैमरों से फोटो खींचना तो महज एक क्लिक का काम है। परंतु उन्हें अपलोड करना व परिवार व मित्रों के बीच साझा करना बड़ा सिरदर्द होता है। इंस्टैंट अपलोड के जरिए एक बार सेटिंग कर देने मात्र से कुछ विशिष्ट उपकरणों द्वारा (जैसे कि स्मार्टफ़ोनों से) आपके द्वारा खींचे गए फ़ोटो स्वयमेव ही अपलोड होते जाएंगे। साथ ही आप अपनी पिकासा अल्बम को भी प्लस से जोड़ सकते हैं।
- हडल – आज की युवा पीढ़ी एसएमएस और चैट की दीवानी है। टैक्स्टिंग उसका न सिर्फ सूचना आदान-प्रदान का बल्कि मनोरंजन का भी एक बड़ा साधन है। हडल के जरिए टैक्स्टिंग को एक पायदान और ऊपर पहुँचाया गया है जहाँ एक से अधिक दोस्त समूह बनाकर इस सेवा का लाभ ले सकेंगे।
हिंदी में भी उपलब्ध
गूगल+ हिंदी समेत कोई 44 भाषाओं में उपलब्ध है। मगर कई स्थलों पर इसका हिंदी अनुवाद बेहद ही कच्चा किस्म का है। सीधा शब्द-दर-शब्द और वाक्य दर वाक्य अनुवाद है। जो कई जगह खीझ उत्पन्न करता है तो कई जगह समझने में मुश्किल पैदा करता है। उदाहरण स्वरूप एक जगह लिखा है -मजेदार के बिलकुल विपरीत कार्य। इस तरह के वाक्यांशों से मंतव्य समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होता है।
वैसे, कुल मिलाकर गूगल+ एक मजेदार, काम की सेवा लगती है जिसमें विशिष्ट किस्म की नए फ्लैवर की सेवाएँ हैं जिनमें कुछ दम तो नजर आता है। हो सकता है आपको लगे कि कुछ सेवाओं से तो आ वाकिफ हैं, मसलन गूगल चैट, या गूगल प्रोफाईल की जानकारी, तो इसे गूगल की इन सब सेवाओं के मिश्रण जुटा कर एक नयी रेसिपी बनाने की जुगत भी समझा जा सकता है।
गूगल+ अभी सिर्फ आमंत्रितों के लिए उपलब्ध है, पर जल्द ही यह हम सभी के आम प्रयोग के लिए, वह भी बिलकुल मुफ़्त उपलब्ध होगा। ऐसे में, इंटरनेट के सिंहासन पर दावेदारी के बड़े लोगों के झगड़ों में हम-आप जैसे आम वेब प्रयोक्ताओं के लिए तो चाँदी ही चाँदी है।
गूगल+ का आमंत्रण आपको भी चाहिए? अभी https://services.google.com/fb/forms/googleplusenuk पर पंजीकरण करें या फिर प्लस पर मौजूद अपने दोस्तों से इन्वाइट की गुजारिश करें।
बड़ा ही धाँसू आर्टिकल है! मेहनत साफ नज़र आ रही है.
बहुत उम्दा जानकारी वाला लेख है। स्क्रीन शॉट बता रहा है कि देबू दा गूगल प्लस में मौजूद हैं…. इसका रहस्य क्या है… मतलब आपको हर जगह इतनी आसानी से एंट्री कैसे मिल जाती है देबू दा… मैंने भी आमंत्रण के लिए अनुरोध किया था पर हाय री किस्मत… 🙁 गूगल ने घास नहीं डाली। शानदार लेख के लिए रवि जी को धन्यवाद।