प्रश्न: FIP ब्लॉग शुरू करने का खयाल कैसे आया? क्या कुछ ऐसा रहा था जो आप लंबे समय से ऐसा करना चाह रहे थे या यह किसी बढ़िया सुबह को अचानक उठी इच्छा थी?
FIP: ब्लॉग लिखने की बात मन में अचानक ही उठी। दरअसल, पिछले कुछ वर्षों में, मैंने बोरे भर भर कर रसीली कथाएँ इकट्ठा कर रखी थीं जो मैं कभी कभी अपने करीबी दोस्तों को सुनाया करता था। जाहिर है, दोस्तों को बड़ा मजा आता था। एक सुहानी शाम को, दक्षिण अफ्रीका रवाना होने से पहले मैं और मेरे तीन दोस्त गपशप करते बैठे थे, बीयर के दौर चल रहे थे। तब उनमें से एक ने सुझाव दिया कि मैं क्यों न इन्हें एक ब्लॉग पर छापूं तो इस तरह से वे ताज़ा तरीन कहानियों का आनंद ले सकेंगे। मैंने कहा कि ये तो बहुत अच्छा विचार है। यह बस हम चारों के बीच साझा होने वाली रहस्यमय काली किताब होनी थी। मैंने इसे कभी भी ‘निजी’ बनाने की नहीं सोची क्योंकि मुझे उम्मीद ही नहीं थी कि कभी किसी और को इसके बारे में पता चलेगा।
पर, मैंने यह जरूर सोचा था कि इसे मैं किस तरह से सिर्फ एक चर्चा मंच के बजाय ज्यादा दिलचस्प बनाऊं। मैंने नकली स्टीव जॉब्स और ‘वॉर फॉर द न्यूज़’ के बारे में सोचा। और, संयोग से, जोहेन्सबर्ग की एक उड़ान पर मैंने ‘वैग द डॉग’ नाम की फ़िल्म देखी। तो, इस तरह से नकली आईपीएल खिलाड़ी – FIP का व्यक्तित्व, कुछ मायनों में, इन सभी तीनों से ही प्रभावित था।
प्रश्न: लोग ब्लॉग लिखना शुरू करते हैं, और शोहरत पाने के लिये भयंकर संघर्ष करते हैं। आपने इतनी जल्दी इतना बड़ा पाठक वर्ग बनाने के लिए क्या जादू कर दिया? विशेष रूप से, शुरू शुरू में लोगों को ये कैसे पता लगा कि इधर FIP नाम का एक “शैतानी” ब्लॉग भी है? 🙂
FIP: ईमानदारी से कहूं तो मुझे खुद भी नहीं पता कि बात इतनी जल्दी कैसे फैली। शुरू के कुछ दिनों में तो इस ब्लॉग का मजा लेने के लिए हम चारों के अलावा वहां और कोई नहीं होता था। इसके बाद एक दिन मैंने देखा कि कोई 5 या 6 पाठक, जिन्हें मैं नहीं जानता था, अनुयायी बन चुके हैं। और बहुत से अन्य लोगों ने ब्लॉग पर टिप्पणियाँ भी की थीं। मैंने अपने दोस्तों से पूछा कि क्या उन्होंने इसके बारे में किसी को बताया था तो उन सभी ने कहा कि ‘नहीं’। मुझे लगता है कि कम से कम उनमें से एक ने किसी को बताया तो होगा। [उस समय मैंने इसके बारे में अलग तरह से महसूस किया, लेकिन अब मैं शिकायत नहीं कर रहा हूँ ;-)]
उस दिन के अस्त होते तक, अनुयायियों की संख्या दुगुनी हो चुकी थी। मैं तब थोड़ा सा परेशान हो गया था। मैंने अपने समूह में सबसे समझदार व्यक्ति को संदेश भेजा और उससे पूछा कि क्या मुझे ये सिलसिला जारी रखना चाहिए। उसकी प्रतिक्रिया थी – ‘लगे रहो मुन्नाभाई’। तो, मैंने लिखना जारी रखा। कुछेक दिन के बाद, क्रिकइन्फ़ो ने अपने मुख पृष्ठ पर इसे डाल दिया। मुझे याद है कि मैं केकेआर 5 बनाम किंग्स इलेवन टीम का खेल देखने के लिए जाते वक्त किंग्समीड के रास्ते पर था तब मेरे दोस्त ने मुझे बताया कि ब्लॉग क्रिकइन्फ़ो के मुख पृष्ठ पर है। जब तक मैं अपने होटल पहुँचता, अनुयायियों की गिनती 150 हो चुकी थी। आखिर में तो, यह लगभग 9000 तक पहुँच गई थी। मैं हर बार हँसता था जब मुझे इस बात की याद आती था कि जब यह संख्या 15 तक पहुँच गई थी तब मैं कितना डर गया था।
क्रिकइन्फ़ो को इस ब्लॉग के बारे में बहुत जल्दी पता चल गया था। मेरा अनुमान है कि या तो उन्होंने इसे संयोग से ढूंढ निकाला या किसी ने फेसबुक या कहीं और चेंप दिया होगा और लोगों को नजर आ गया। मैं नहीं जानता। फिर भी, मुझे लगता है कि पहले पहल पता चलने वालों में उनका ही नाम होना चाहिए। उन्होंने कुछ दिनों के लिए निगरानी भी की होगी इस बात की पुष्टि करने के लिए कि जो बातें लिखी जा रही हैं वे सत्य भी हैं या नहीं। जब एक बार वे संतुष्ट हो गए, तो फिर उन्होंने इसे मुख पृ्ष्ठ पर जगह दे दी। उसके बाद तो मेरे ब्लॉग ने गति पकड़ ली।
प्रश्न: आप जो बातें लिखते थे वे काल्पनिक होते थे या तथ्यों पर आधारित? यदि वे तथ्यों पर आधारित होते थे तो क्या टीम के भीतर या प्रेस में आपका कोई खबरी था?
FIP: मैं अपने ब्लॉग में निहित इस अस्वीकरण कि “इस ब्लॉग के सभी पात्र काल्पनिक हैं” पर अब भी कायम हूँ। किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति के साथ कोई समानता, विशुद्ध रूप से संयोग है।
प्रश्न: क्या आप कभी इस कथित “वास्तविक आईपीएल खिलाड़ी” के व्यक्तित्व को बनाए रखने के सवाल से जुड़ी नैतिकता के बारे में चिंतित हुए? क्योंकि यदि आपकी बातों को गंभीरता से लिया जाता तो टीम के भीतर मारा-मारी मचती और अंततः निर्दोष खिलाड़ियों को संदेह के घेरे में रखा जाता। या आपने यह सोचा रखा था कि अपनी बातों को ‘नकली आईपीएल खिलाड़ी’ संबंधी अस्वीकरण के तले ‘नकली’ शब्द के जरिए ढांप लिया जाएगा, भले ही ब्लॉग पाठकों को सारा लेखन गप्प की बजाय सचाई लगे?
FIP: मैंने हमेशा यह सुनिश्चित किया कि मैं प्रबंधन के लिये पर्याप्त सुराग छोड़ूं जिससे वे जानें कि मैं कौन हो सकता हूँ या कौन नहीं। मैं मानता हूं कि शुरुआती दिनों में, जब ब्लॉग अमूमन निजी था तो उस समय मैं इस मोर्चे पर लापरवाह सा था। लेकिन एक बार जब यह लोकप्रिय हो गया और मैंने इसे जारी रखने का फैसला किया, तो मैंने पहले के कुछ लेखों को संपादित किया और यह ध्यान रखा कि किसी विशेष खिलाड़ी को मेरे लेखन की वजह से संदेह के दायरे में नहीं आना चाहिए। वहाँ निश्चित रूप से आपसी मारा-मारी होते रहती थी और मैं इसे बारीकी से देखता था, लेकिन मुझे यकीन था कि किसी निर्दोष खिलाड़ी को मेरे ब्लॉग की वजह से कोई कीमत चुकानी नहीं पड़ेगी। मुझे टीम प्रबंधन पर भरोसा था कि वो अगर अपना चौथाई दिमाग भी इस्तेमाल करेंगे तो वे ऐसी कोई बेवकूफ़ी नहीं करेंगे।
जब आकाश और बांगड़ को वापस भेजा गया तब मैं चिंतित हुआ था। मैंने कुछ दिनों के लिए ब्लॉगिंग बंद कर दी थी, जब तक कि मुझे यह विश्वास नहीं हो गया कि इसका कारण स्वयं आकाश के अलावा अन्य कोई नहीं है।
आपके प्रश्न को मैं थोड़ा सा सही करना चाहूंगा – मैं हमेशा से बड़ा भारी क्रिकेट प्रशंसक रहा हूं, और पिछले दस वर्षों से मुझे ‘खालिस प्रशंसक’ से भी ज्यादा बनने के अवसर मिले, और मेरे विचार में यह बात उस वीडियो पोस्ट में में भी है। लेकिन, आपका कहना सही है, मैं यह ज़रूर मानता था कि ब्लॉग के नाम में ‘फ़ेक’ यानि नकली शब्द रहने से मैं तो बरी हो जाता हूं।
प्रश्न: आप कभी भी अपनी पहचान उजागर करेंगे?यदि नहीं, तो क्यों?
FIP: ‘कभी’ के बारे में तो मुझे कुछ पता नहीं है, लेकिन इस समय मैं गुमनामी में बहुत खुश हूँ। कुछेक साल पहले, पेरिस में मेरी एक दिलचस्प आदमी से मुलाकात हुई। वह बहुत पढ़ाकू और जानकार था, पर इसके अलावा वह बहुत सामान्य, मध्यम आयु का व्यक्ति था जो एक फ्रेंच फुटबॉल क्लब में नियमित नौकरी पर था। बेहद साधारण व्यक्तित्व! उसने मुझे एक सप्ताहांत अपनी पत्नी और तीन बच्चों के मेहमान के रूप में अपने घर में आमंत्रित किया। और, जब मैं वहाँ गया तब मुझे एहसास हुआ कि उसका घर तो, घर क्या एक महल है, और खुद वह एक अरबपति है, फुटबॉल क्लब के मालिकों में से एक। मैंने उनसे पूछा कि वे इस तरह लो प्रोफ़ाइल बना कर क्यों रहते हैं। उनकी प्रतिक्रिया थी ‘vivre cache pour vivre heureux’ , जिसका अर्थ है ‘छुपा जीवन ही खुशगवार जीवन होता है’।
प्रश्न: पर आप अपनी पहचान उजागर करने से सहसा पलट क्यों गए थे?
FIP: संभव है कि मेरी पहचान जाहिर होने से कुछ खिलाड़ियों को, जिन्हें मैं जानता हूं, कुछ समस्या होती। जब मैंने इसके बारे में सोचा तो लगा कि मुझे कोई अधिकार नहीं है कि बिना किसी गलती के मैं उन्हें किसी अजीब स्थिति में डाल दूं।
प्रश्न: क्या आप अन्य ब्लॉगों को पढ़ते हैं? यदि हाँ, तो किन्हें?
FIP: मेरा पसंदीदा ब्लॉग thevigilidiot.com है। यह शख्स बेहद मजेदार है। कुरबान फ़िल्म की उसकी समीक्षा पढ़ने के बाद मैंने वास्तव में वो फ़िल्म इसलिए देखी ताकि जान सकूं कि कैसे कोई फ़िल्म दिमाग का दही कर सकने की हद तक बेहूदी हो सकती है।
एक अन्य ब्लॉग मुझे पसंद आता है वो है इनक्लूजिव प्लेनेट ब्लॉग। इनक्लूजिव प्लेनेट एक संगठन है जो विकलांगों को सेवाएं प्रदान करता है और उनके ब्लॉग पर दुनिया भर से शारीरिक अक्षम लोग अपने अनुभवों को साझा करते हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि आप यहाँ पर शायद ही कभी कोई रोतड़ू, सहानुभूति बटोरने वाली कहानियाँ पाएँगे। यहाँ पर बुद्धिमत्तापूर्ण, विचारोत्तेजक, अच्छी और प्रेरक कथाएँ मिलती हैं। व्यक्तिगत रूप से, इस ब्लॉग के माध्यम से मैंने एक समुदाय के बारे में बहुत कुछ सीखा है जिसके बारे में मैं बहुत कम जानता था। ब्लॉग पर जब्राथ और गिडी अह्रोनोविच के पोस्ट अवश्य पढ़े।
मुझे यात्रा ब्लॉगों को पढ़ने में भी मजा आता है। Janchipchase.com नोकिया के डिजाइन प्रमुख का ब्लॉग है। वे दुनिया की ऐसी बारीकी से तस्वीरें खींचते हैं, जो दूसरे आमतौर पर अनदेखा कर देते हैं। फिर, यह एक दिलचस्प ब्लॉग है अप्पम चू*या के क्षेत्र से आए आईटी सेल्स पर्सन का जो यूरोप में रहता है और अपने अनुभवों को अपने ब्लॉग में लिखता है। मैं क्रिकइन्फ़ो पेज 2 को भी पसंद करता हूं। उनके पैनल में कुछ मजेदार लेखक हैं। जेमी ऑल्टर, आनंद रामचंद्रन, एंड्रयू ह्यूजेस, निशी नारायण, जॉर्ज बेनाय – ये सब बहुत अच्छे हैं। प्रेम पणिक्कर का ट्विटर फ़ीड मेरा पसंदीदा है, और कभी कभी मैं ‘क्रिकेट विथ बॉल्स’ पर भी निगाह मार लेता हूं।
प्रश्न: आपका पसंदीदा नाइट राइडर खिलाड़ी कौन रहा है? आपके विचार से टीम में किसे नहीं होना चाहिए था?
FIP: मेरा पसंदीदा नाइट राइडर? असल में बहुत सारे हैं! मुझे लगता है कि ईशांत को वहाँ होना चाहिए था क्योंकि, सीजन 2 के दौरान, उसकी वजह से ही ‘नाइट राइडर’ की कुछ अलग तरह से व्याख्या बनी थी। एक तरह से वही सचमुच का ‘नाइट राइडर’ था। उसके रहने से खेल का कोरबो-लोड़बो-जीतबो जैसा अंत नहीं होता।
क्रिस गेल का साथ बढ़िया है। वास्तव में, मुझे लगता है, गेल और गिब्स दुनिया में सबसे ज्यादा मजाहिया क्रिकेटर हैं। हालांकि, सबसे मजेदार व्यक्ति जिसके साथ आप एक शाम बिताना पसंद करेंगे वो हैं डेविड लॉयड। ईमानदारी से तो उसे केकेआर का कोच होना चाहिए था। ऐसे में भले ही वे अपने सभी मैच हार जाते लेकिन कम से कम वे मैदान में हँसते-हँसाते तो।
एक और पसंदीदा नाइट राइडर तो जॉन बुकानन का लैपटॉप होना चाहिए। पूरे महीने के लिए उसके लैपटॉप ने उसे किसी कामुक नृत्य करती बार बाला की तरह सम्मोहित कर रखा था। चूंकि वे ज्यादातर समय अपने लैपटॉप की इस उग्र यौन ऊर्जा से विचलित रहते थे, खिलाड़ियों को राहत की सांस लेने का समय मिलता रहता था।
टीम में किसे नहीं होना चाहिए था? अमां, हम सब जानते हैं कि सड़न और बदबू की शुरूआत मछली के सिर से ही होती है।
प्रश्न: FIP की आगे की राह क्या है? क्या वह इस आईपीएल सीजन में वापस आएगा? हमें अपनी पुस्तक के बारे में भी बताएँ।
FIP: ब्लॉग के बारे में, ठीक है, मुझे अभी भी नहीं पता कि मैं सीजन 3 के एक्शन में मैं कहाँ और कितने करीब रहूंगा। इसलिए, इस मोर्चे पर मामला अभी थोड़ा धुंधला है। मेरी किताब ‘गेमचेंजर्स’ फरवरी 2010 में जारी हो रही है जिसे मैं पिछले छह महीनों से लिख रहा हूँ। इसमें वह सब कुछ है जो ब्लॉग में नहीं है, या नहीं हो सकता था। इसके बारे में मैं बहुत उत्साहित हूँ।
प्रश्न: क्या आपको लगता है कि आपकी किताब ब्लॉग के हल्ला-गुल्ला/विवादास्पद होने के कारण बेस्टसेलर रहेगी? किताब के लोकार्पण के समय क्या आपको बीसीसीआई या दूसरों द्वारा किसी तरह की कोई कानूनी कार्रवाई (मानहानि आदि) का अंदेशा है?
FIP: मुझे नहीं पता है कि ब्लॉग की वजह से किताब की बिक्री में इजाफ़ा होगा या नहीं, लेकिन यह सच है कि अगर ब्लॉग नहीं होता तो ये किताब भी नहीं होती। यह भी सच है कि यदि यह ब्लॉग नहीं होता तो हार्पर कॉलिन्स मुझे किसी घोड़े के पिछवाड़े से ज्यादा कुछ नहीं समझते।
प्रश्न: अपने प्रशंसकों के लिए कोई संदेश देना चाहेंगे?
FIP: मेरे ब्लॉग के अनुयायियों और उस पर टिप्पणी करने वालों को दिली शुक्रिया। आप सब ने मुझे ताक़त दी। ब्लॉगिंग के अनुभव के दौरान, मैंने यह अनुभव किया कि किसी के चरित्र में सार्वजनिक लोकप्रियता का कितना दुष्प्रभाव हो सकता है। ‘जबर्दस्त’, ‘शानदार’, ‘बेहतरीन’ जैसे शब्द आपको भीतर से थोथा, अहंकारी बना सकते हैं। और इसका नतीजा होता है एक भद्दी पोस्ट, फिर वही लोग पिन चुभाकर आपका गुब्बारा पिचका देते हैं और आपके सही आकार में वापस ले आते हैं। मुझे लगता है कि ब्लॉग के अनुयायी फूल और पत्थर संतुलित तरीके से फेंकते हैं, और इसलिए उन्हें मेरा दिली धन्यवाद। मुझे आशा है कि वे मेरी किताब को भी पसंद करेंगे। इसके अलावा, ब्लॉग की सफलता का 50% हिस्सा तो टिप्पणियों की वजह से ही आया है। ऐसे कई लोग हैं जो ब्लॉग पर सिर्फ टिप्पणियाँ पढ़ने के लिए आते थे। उनमें से कुछ तो बहुत मज़ेदार थे।
इस बातचीत का हिन्दी अनुवाद किया रविशंकर श्रीवास्तव ने।
ग्रेट बोंग पर पहले ही पढ़ लिया था इस साक्षात्कारको. अनुवाद बेहतरीन है.