विगत वर्ष सेनफ्रांसिसको के एक सम्मेलन में मॉर्गन स्टेनली की मेरी मीकर ने जानकारी दी कि कई गैर अमरीकी बाज़ार इंटरनेट और मोबाईल यंत्रो के प्रयोग में अग्रणी हैं, जैसे कि ई-कॉमर्स में जर्मनी, आनलाईन गेमिंग में चीन, ब्रॉडबैंड में दक्षिण कोरिया, मोबाईल पेमेंट में जापान, आनलाईन विज्ञापन में ब्रिटेन, सोशियल नेटवर्किंग में ब्राजील व दक्षिण कोरिया तथा SMS माइक्रो ट्राँसेक्ज़न में फिलीपीन्स। इसी ने मुझे सोच में डाल दिया। ऐसे कौन से डिजीटल तकनलाजी के क्षेत्र हैं जिनमें भारत अग्रणी हो सकता है?
भारत को अगर विश्व का अगुआ बनना है तो यह घरेलू बाजार के बलबूते पर ही हो सकता है। कंपनियाँ भारतीय प्रयोक्ताओं या व्यवसाय को निशाना बना कर बढ़त हासिल करें और फिर इसी बुनियाद पर अंतरराष्ट्रीय पहुंच बनायें। हाल ही में हमने सुज़लॉन को वैकल्पिक उर्जा उद्योग क्षेत्र में यह करते देखा है। भारत किन क्षेत्रों में बढ़त हासिल कर सकता है, इस सवाल का जवाब पाने के लिये ज़रूरी है कि हम पहले भूतकाल को समझें और इसके बाद ही कल की दुनिया की परिकल्पना करें।
अगले 5 से 10 सालों में हम कंप्यूटर, मोबाईल फ़ोन और इंटरनेट के भिन्न रूप देखेंगे जो विकासशील देशों में अपना गहरा प्रभाव छोडेंगे।पिछले 25 सालों में हमने जो भी तकनीकी प्रवर्तन देखे उनका आधार कंप्यूटर, मोबाईल फ़ोन और इंटरनेट रहे हैं। यह सभी नवाचार विकसित बाज़ारों द्वारा लाये गये जिन्होंने बाद में उद्गामी बाजारों का रुख किया। भारत में मोबाईल फ़ोन का अंगीकरण पिछले 5 सालों को सबसे बड़ी खबर रही है। तथापि कंप्यूटर व इंटरनेट के व्यापन के मामले में भारत फिसड्डी रहा है।
अगले 5 से 10 सालों में हम कंप्यूटर, मोबाईल फ़ोन और इंटरनेट के भिन्न रूप देखेंगे जो विकासशील देशों में अपना गहरा प्रभाव छोडेंगे। यह तिकड़ी भारत जैसे उद्गामी बाजारों में आधारभूत डिजिटल सेवाओं के निर्माण में सहायक होगी। इस आधारभूत सेवा से इन देशों की आर्थिक प्रगति की रफ़्तार भी तेज़ होगी। जिन तीन तकनीकी प्रवर्तनों पर उद्गामी बाजारों में आधारभूत डिजिटल सेवायें निर्मित होंगी वे हैं टेलीप्यूटर, यूबिनेट और एम-वेब।
टेलीप्यूटर, तकनलाजी का पूर्वानुमान लगाने वाले जॉर्ज गिल्डर द्वारा दिया शब्द है। इसे एक ऐसा यंत्र समझें जो मोबाईल फ़ोन और एक कंप्यूटर (सटीक रूप से कहें तो नेटवर्क कंप्यूटर) का मिश्रण है। मेरे विचार से टेलीप्यूटर मूलतः एक मोबाईल फ़ोन होगा जिसका एक मल्टीमीडीया नेटवर्क कंप्यूटर के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकेगा। इसे साधारण कीबोर्ड, मॉनिटर और माऊस से भी जोड़ा जा सकेगा।
टेलीप्यूटर को हम अपने साथ कहीं भी ले जा सकेंगे। इसके साथ इसका अपना छोटा सा कीपैड और डिस्पले होगा। इसमें अंतनिर्मित वेब ब्राउज़र होगा और बढ़िया डेटा कनेक्टिविटी भी उपलब्ध होगी। संभवतः भविष्य के टेलीप्यूटरों में आवाज पहचानने की क्षमता और निन्टेंडो wii गेमिंग कंसोल की तरह इशारे समझने की काबिलियत भी होगी। जब हमें बड़े डिस्पले और कीबोर्ड की दरकार हो हम अपने टेलीप्यूटर को ऐसे सर्वर से जोड़ देंगे जिसमें जानकारी और ऐप्लीकेशन भंडारित किये जायेंगे। एप्पल के आईफ़ोन से हमें भविष्य के टेलीप्यूटरों की झलक मिलती है।
टेलीप्यूटर को हम अपने साथ कहीं भी ले जा सकेंगे। इसमें अंतनिर्मित वेब ब्राउज़र होगा और बढ़िया डेटा कनेक्टिविटी भी उपलब्ध होगी।यूबिनेट कनेक्टिविटी का हर जगह सुलभ नेटवर्क है। यह एक तरह का सर्वव्यापी जाल होगा जिस तक कोई भी कहीं भी पहुंच सकेगा। यह बेतार और ब्रॉडबैंड चालित होगा। इसके शुरुवाती संस्करण तृतीय पीढ़ी (3G) मोबाईल, वाईमैक्स (WiMax) और बेतार मेश (Mesh Wireless) जैसी तकनलाजियों के रूप में देखे जा सकते हैं। आगामी समय के नेटवर्क में कहीं अधिक गति होगी। यूबीनेट टेलीप्यूटर पर “क्लाउड कम्पयूटिंग” की कल्पना को हकीकत में बदल देगा और इसका निष्पादन वैसी हो जायेगा जिसे हम अपने डेस्कटॉप पर देखने के आदि हैं।
एम-वेब ऐसा इंटरनेट है जो पर्सनलाईज़्ड, मोबाईल और तकरीबन “चमत्कारी” है। इसमें एक ऐसा कंप्यूटिंग ग्रिड सम्मिलित होगा जो तमाम संग्रहण और प्रोसेसिंग का ख्याल रखेगा। परसनालाईज़ेशन (व्यक्ति-विशेष के अनुसार बनाना) तो बेहद चमत्कारी अनुभव प्रदान करेगा क्योंकि टेलीप्यूटर एम-वेब से प्रासंगिक जानकारी के आधार पर यह पता लगा लेगा कि आप कौन हैं और कहाँ हैं। जाहिर तौर पर मोबाईल पर उपल्ब्ध होने के कारण एम-वेब लोगों को खूब जंचेगा।
आज के अंतर्जाल को “रेफरेंस वेब” कहा जाता है। यह एक विशाल पुस्तकालय की तरह है जिसमें लगभग सारी जानकारी बस एक बटन की दूरी पर मौजूद रहती हो। इसके सापेक्ष एम-वेब “इन्क्रिमेंटल वेब” होगा जो नई चीजों पर केंद्रित होगा। यह ताज़ा यानि रियल टाईम जानकारी के स्रोतों पर ध्यान देगा। यह बात आहिस्ता आहिस्ता मायने रखने लगेगी क्योंकि टेलीप्यूटर एक दो तरफा यंत्र होगा। इसमें महसूस और प्रतिक्रिया करने तथा लगातार सूचना प्रसारित और प्राप्त करने की काबलियत होगी।
आज का अधिकांश इंटरनेट टेक्सट आधारित है। पर एम-वेब रिच मीडिया पर केंद्रित होगा। मौजूदा मध्यम और उच्च श्रेणी के मोबाईल फ़ोन की तरह ही टेलीप्यूटर एक मल्टीमीडिया यंत्र है। यूबिनेट के द्वारा रिच मीडिया युक्त सामग्री भेजना और प्राप्त करना काफी आसान और सस्ता हो जायेगा।
भारत में इस नये विश्व के निर्माण की क्षमता है क्योंकि मोबाईल फ़ोन हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुका है।एक और बड़ा बदलाव WWW से NNN की ओर होगा। NNN यानि Now, News तथा Near Web, जो भी हमारे आस पास घट रहा है उसकी सूचना उसी समय हमार टेलीप्यूटर पर भी मौजूद होगा।
आज के अंतर्जाल पर “खोज” चहलकदमी का मुख्य तरीका है। एम-वेब सब्सक्रिप्शन यानि ग्राहकी पर आधारित होगा। क्योंकि हमारा यंत्र हमेशा हमारे पास मौजूद रहेगा अतः हर आयोजन व घटना का पता तभी के तभी चल सकेगा। इसके साथ ही अंतर्जाल पर कमाई का साधन बने विज्ञापन एम-वेब पर ग्राहकी आधारित इंवर्टाइज़िंग का रूप गढ़ लेंगे। इंवर्टाइज़िंग निमंत्रण आधारित विज्ञापन होंगे यानि ग्राहक की इज़ाजत लेकर उन तक विज्ञापन पहुंचाये जायेंगे।
भारत में इस नये विश्व के निर्माण की क्षमता है क्योंकि हममें से ज़्यादातर लोगों के लिये मोबाईल फ़ोन जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुका है। टेलीप्यूटरों, यूबीनेट और एम-वेब की इस उभरती दुनिया के लिये उपकरण, नेटवर्क तथा सेवाओं के निर्माण में मदद कर भारतीय कंपनियाँ न केवल घरेलू बाजार में लाभ कमा सकती हैं वरन् वैश्विक बाज़ारों की ओर भी कदम बढ़ा सकती हैं। ये तकनीकी विशेषतायें अपनी कंपनियों का निर्माण करने वाले भारतीय उद्योगपतियों के लिये सिद्धांत रूप में काम आयेंगे। भविष्य हमसे उतना दूर नहीं जितना हमारा अनुमान है।
हिन्दी में अनुवादः देबाशीष चक्रवर्ती
आपके मुंह में घी शक्कर…;हमारी शुभकामनाएं साथ होगी।
“ऐसे कौन से डिजीटल तकनलाजी के क्षेत्र हैं जिनमें भारत अग्रणी हो सकता है?”
बहुत ही मौलिक प्रश्न उठाकर उसका जबाब देने की आपने कोशिश की है। यदि हम इस प्रश्न का व्यावहारिक जबाब दे सके तो निश्चित ही भविष्य उससे नजदीक है जितना हम कल्पना करते हैं।
इसे ऑनलाइन देखकर अच्छा लगा. लेकिन एक सवाल: क्या सिर्फ विज्ञान और तकनीक के बारे में ही बात करेंगे या अन्य विषयों को भी शामिल किया जाएगा?
लेख काफी अच्छा है …. टेलीप्यूटरों, यूबीनेट और एम-वेब …. इसके बारे में समझने में लोगों को और वक्त लगेगा.. अभी तो बुनियादी ढांचा भी सही नहीं बन सका है… बस सब्सक्राइबर्स को बढ़ाने की होड़ चल रही है. गुणवत्ता और उसमें निरंतरता आ जाए तो शायद किसी एक क्षेत्र में विशेषज्ञता भी मिल जाएगी. सामयिकी को भी ऐसा ही कोई चेहरा हासिल करना चाहिए.
सामयिकी का प्रारम्भ तो बढ़िया हुआ है, लेआउट, रंग, सब बहुत सुंदर है, अल्ताफ़ वाला साक्षात्कार देख कर भी बहुत अच्छा लगा. यही आशा है कि और बढ़िया हो, खूब पढ़ा जाये. हमेशा कि तरह, मेहनत का काम देबू तुम्हारे हिस्से ही आता है और हमेशा कि तरह इस बार भी बहुत बढ़िया किया है.
लेख अच्छा लगा पर कुछ शब्दो को समझने के लिए और दिमाग खपाना होगा। वैसे दिमाग खपाने से ही कुछ उपलब्ध होता है।